सुभाष चन्द्र बोस पर निबंध 1 (100 शब्द)
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को हुआ और इनका निधन 18 अगस्त 1945 में हुआ था। जब इनकी मृत्यु हुयी तो ये केवल 48 वर्ष के थे। वो एक महान भारतीय राष्ट्रवादी नेता थे जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारत की आजादी के लिये द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बड़ी हिम्मत से लड़ा था। नेताजी 1920 और 1930 के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के स्वच्छंदभाव, युवा और कोर नेता थे। वो 1938 में कांग्रेस अध्यक्ष बने हालांकि 1939 में उन्हें हटा दिया गया था। नेताजी भारत के एक क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने बहुत संघर्ष किया और एक बड़ी भारतीय आबादी को स्वतंत्रता संघर्ष के लिये प्रेरित किया।
सुभाष चन्द्र बोस पर निबंध 2 (150 शब्द)
सुभाष चन्द्र बोस एक महान स्वतंत्रता सेनानी और देशभक्त थे। इनका जन्म एक अमीर हिन्दू कायस्थ परिवार में 23 जनवरी 1897 को कटक में हुआ। ये जानकीनाथ बोस (पिता) और प्रभावती देवी (माता) के पुत्र थे। अपनी माता-पिता के 14 संतानों में से ये 9वीं संतान थे। इन्होंने अपनी प्रारंभिक स्कूली शिक्षा कटक से ली जबकि मैट्रिकुलेशन डिग्री कलकत्ता से और बी.ए. की डिग्री कलकत्ता यूनिवर्सिटी (1918 में) से प्राप्त की।
आगे की पढ़ाई के लिये 1919 में बोस इंग्लैंड चले गये। नेताजी चितरंजन दास (एक बंगाली राजनीतिक नेता) से बहुत ज्यादा प्रभावित थे और जल्द ही भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष से जुड़ गये। स्वराज नामक एक समाचार पत्र के माध्यम से उन्होंने लोगों के सामने अपने विचार प्रकट करना शुरु किये। उन्होंने ब्रिटिश शासन की खिलाफ़त की और भारतीय राजनीति में रुचि रखने लगे। सक्रिय भागीदारी के कारण, इन्हें ऑल इंडिया युवा कांग्रेस अध्यक्ष और बंगाल राज्य कांग्रेस के सेक्रेटरी के रुप में चुना गया। इन्होंने अपने जीवन में बहुत सारी कठिनाईयों का सामना किया लेकिन कभी-भी निराश नहीं हुए।
सुभाष चन्द्र बोस पर निबंध 3 (200 शब्द)
सुभाष चन्द्र बोस देश के एक महान और बहादुर नेता थे जो अपने कड़े संघर्षों की वजह से नेताजी के नाम से प्रसिद्ध हुए। उनका जन्म 23 जनवरी 1897 में एक हिन्दू परिवार में कटक में हुआ था। वो अपने बचपन से ही बहुत बहादुर और प्रतिभाशाली थे साथ ही शारीरिक रुप से भी वो बहुत मजबूत थे। वो हमेशा हिंसा में भरोसा करते थे और एक बार तो उन्होंने अपने यूरोपियन स्कूल प्रोफेसर की पिटाई कर दी थी। बाद में सजा के रुप में उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया था। 1918 में इन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से प्रथम स्थान में बी.ए. की परीक्षा पास की और आगे की पढ़ाई के लिये इंग्लैंड के कैंब्रिज़ यूनिवर्सिटी चले गये। वो हमेशा एक उच्च अधिकारी के रुप में अपने देश की सेवा करना चाहते थे।
ब्रिटिश शासन से आजादी के लिये अपने देश की सेवा करने के लिये, ये कांग्रेस के आंदोलन से जुड़ गये। 1939 में उन्हें कांग्रेस के अध्यक्ष के रुप में चुना गया लेकिन बाद में कांग्रेस नीतियों के साथ भिन्नता होने के कारण हटा दिये गये। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वो भारत से फरार हो गये और जर्मनी से मदद के लिये कहा, जहाँ हिटलर के द्वारा दो वर्ष के लिये उन्हें मिलिट्री ट्रेनिंग दी गयी। वहाँ उन्होंने जर्मनी, इटली और जापान से युद्ध के कैदियों और भारतीय रहवासियों को प्रशिक्षण के द्वारा अपनी भारतीय राष्ट्रीय सेना बनायी। अच्छे मनोबल और अनुशासन के साथ एक सच्ची भारतीय राष्ट्रीय सेना (अर्थात् आजाद हिन्द फौज) बनाने में वो सफल हुए।
सुभाष चन्द्र बोस पर निबंध 4 (250 शब्द)
भारतीय इतिहास में सुभाष चन्द्र बोस एक सबसे महान व्यक्ति और बहादुर स्वतंत्रता सेनानी थे। भारत के इतिहास में स्वतंत्रता संघर्ष के लिये दिया गया उनका महान योगदान अविस्मरणीय हैं। वो वास्तव में भारत के एक सच्चे बहादुर हीरो थे जिसने अपनी मातृभूमि की खातिर अपना घर और आराम त्याग दिया था। वो हमेशा हिंसा में भरोसा करते थे और ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता पाने के लिये सैन्य विद्रोह का रास्ता चुना।
उनका जन्म एक समृद्ध हिन्दू परिवार में 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में हुआ था। उनके पिता जानकी नाथ बोस थे जो एक सफल बैरिस्टर थे और माँ प्रभावती देवी एक गृहिणी थी। एक बार उन्हें ब्रिटिश प्रिसिंपल के ऊपर हमले में शामिल होने के कारण कलकत्ता प्रेसिडेंसी कॉलेज से निकाल दिया गया था। उन्होंने प्रतिभाशाली ढंग से आई.सी.एस की परीक्षा को पास किया था लेकिन उसको छोड़कर भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई से जुड़ने के लिये 1921 में असहयोग आंदोलन से जुड़ गये।
नेताजी ने चितरंजन दास के साथ काम किया जो बंगाल के एक राजनीतिक नेता, शिक्षक और बंगलार कथा नाम के बंगाल सप्ताहिक में पत्रकार थे। बाद में वो बंगाल कांग्रेस के वालंटियर कमांडेंट, नेशनल कॉलेज के प्रिंसीपल, कलकत्ता के मेयर और उसके बाद निगम के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रुप में नियुक्त किये गये। अपनी राष्ट्रवादी क्रियाकलापों के लिये उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा लेकिन वो इससे न कभी थके और ना ही निराश हुए। नेताजी कांग्रेस के अध्यक्ष के रुप में चुने गये थे लेकिन कुछ राजनीतिक मतभेदों के चलते गांधी जी के द्वारा उनका विरोध किया गया था। वो पूर्वी एशिया की तरफ चले गये जहाँ भारत को एक स्वतंत्र देश बनाने के लिये उन्होंने अपनी “आजाद हिन्द फौज” को तैयार किया।
सुभाष चन्द्र बोस पर निबंध 5 (300 शब्द)
सुभाष चन्द्र बोस पूरे भारत भर में नेताजी के नाम से मशहूर हैं। वो भारत के एक क्रांतिकारी व्यक्ति थे जिन्होंने भारत की आजादी के लिये बहुत बड़ा योगदान दिया। 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा में कटक के एक अमीर हिन्दू परिवार में इनका जन्म हुआ। इनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस था जो कटक जिला न्यायालय में एक सरकारी वकील थे और माँ का नाम प्रभावती देवी था। सुभाष ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कटक में एंग्लों इंडियन स्कूल से ली और कलकत्ता विश्वविद्यालय, स्कॉटिश चर्च कॉलेज से दर्शनशास्त्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त की।
वो एक बहादुर और महत्वकांक्षी भारतीय युवा थे जिसने सफलतापूर्वक आई.सी.एस परीक्षा पास होने के बावजूद अपनी मातृभूमि की आजादी के लिये देशबंधु चितरंजन दास द्वारा प्रभावित होने के बाद असहयोग आंदोलन से जुड़ गये। हमारी आजादी के लिये ब्रिटिश शासन के खिलाफ वो लगातार हिंसात्मक आंदोलन में लड़ते रहे।
महात्मा गांधी के साथ कुछ राजनीतिक मतभेदों के कारण 1930 में कांग्रेस के अध्यक्ष होने के बावजूद उन्होंने कांग्रेस को छोड़ दिया। एक दिन नेताजी ने अपनी खुद की भारतीय राष्ट्रीय शक्तिशाली पार्टी ‘आजाद हिन्द फौज’ बनायी क्योंकि उनका मानना था कि भारत को एक आजाद देश बनाने के लिये गांधीजी की अहिंसक नीति सक्षम नहीं है। अंतत: उन्होंने ब्रिटिश शासन से लड़ने के लिये एक बड़ी और शक्तिशाली “आजाद हिन्द फौज” बनायी।
वो जर्मनी गये और कुछ भारतीय युद्धबंदियों और वहाँ रहने वाले भारतीयों की मदद से भारतीय राष्ट्रीय सेना का गठन किया। हिटलर के द्वारा बहुत निराशा के बाद वो जापान गये और अपनी भारतीय राष्ट्रीय सेना को एक प्रसिद्ध नारा दिया “दिल्ली चलो” जहाँ पर आजाद हिन्द फौज और एंग्लों अमेरिकन बलों के बीच एक हिंसक लड़ाई हुयी। दुर्भाग्यवश, नेताजी सहित उन्हें आत्मसमर्पण करना पड़ा। जल्द ही, टोक्यो के लिये प्लेन में छोड़े गये हालांकि फारमोसा के आंतरिक भाग में प्लेन दुर्घटनाग्रस्त हो गया। ये रिपोर्ट किया गया कि उस प्लेन दुर्घटना में नेताजी की मृत्यु हो गयी। नेताजी का साहसिक कार्य आज भी लाखों भारतीय युवाओं को देश के लिये कुछ कर गुजरने के लिये प्रेरित करता है।
सुभाष चन्द्र बोस पर निबंध 6 (400 शब्द)
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस भारत के एक महान देशभक्त और बहादुर स्वतंत्रता सेनानी थे। वो स्वदेशानुराग और जोशपूर्ण देशभक्ति के एक प्रतीक थे। हर भारतीय बच्चे को उनको और भारत की स्वतंत्रता के लिये किये गये उनके कार्यों के बारे में जरुर जानना चाहिये। इनका जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में एक हिन्दू परिवार में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा उनके अपने गृह-नगर में पूरी हुयी थी जबकि उन्होंने अपना मैट्रिक कलकत्ता के प्रेसिडेंसी कॉलेज से किया और कलकत्ता विश्वविद्यालय के स्कॉटिश चर्च कॉलेज से दर्शनशास्त्र में ग्रेज़ुएशन पूरा किया। बाद में वो इंग्लैंड गये और चौथे स्थान के साथ भारतीय सिविल सेवा की परीक्षा को पास किया।
अंग्रेजों के क्रूर और बुरे बर्ताव के कारण अपने देशवासियों की दयनीय स्थिति से वो बहुत दुखी थे। भारत की आजादी के माध्यम से भारत के लोगों की मदद के लिये सिविल सेवा के बजाय उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ने का फैसला किया। देशभक्त देशबंधु चितरंजन दास से नेताजी बहुत प्रभावित थे और बाद में बोस कलकत्ता के मेयर के रुप में और उसके बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये। बाद में गांधी जी से वैचारिक मतभेदों के कारण उन्होंने पार्टी छोड़ दी। कांग्रेस पार्टी छोड़ने के बाद इन्होंने अपनी फारवर्ड ब्लॉक पार्टी की स्थापना की।
वो मानते थे कि अंग्रेजों से आजादी पाने के लिये अहिंसा आंदोलन काफी नहीं है इसलिये देश की आजादी के लिये हिंसक आंदोलन को चुना। नेताजी भारत से दूर जर्मनी और उसके बाद जापान गये जहाँ उन्होंने अपनी भारतीय राष्ट्रीय सेना बनायी, ‘आजाद हिन्द फौज’। ब्रिटिश शासन से बहादुरी से लड़ने के लिये अपनी आजाद हिन्द फौज में उन देशों के भारतीय रहवासियों और भारतीय युद्ध बंदियों को उन्होंने शामिल किया। सुभाष चन्द्र बोस ने अंग्रेजी शासन से अपनी मातृभूमि को मुक्त बनाने के लिये “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” के अपने महान शब्दों के द्वारा अपने सैनिकों को प्रेरित किया।
ऐसा माना जाता है कि 1945 में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु एक प्लेन दुर्घटना में हुयी थी। ब्रिटिश शासन से लड़ने के लिये उनकी भारतीय राष्ट्रीय सेना की सभी उम्मीदें उनकी मृत्यु की बुरी खबर के साथ समाप्त हो गयी थी। उनकी मृत्यु के बाद भी, कभी न खत्म होने वाली प्रेरणा के रुप में भारतीय लोगों के दिलों में अपनी जोशपूर्ण राष्ट्रीयता के साथ वो अभी-भी जिदा हैं। वैज्ञानिक विचारों के अनुसार, अतिभार जापानी प्लेन दुर्घटना के कारण थर्ड डिग्री बर्न की वजह से उनकी मृत्यु हुयी। एक अविस्मरणीय वृतांत के रुप में भारतीय इतिहास में नेताजी का महान कार्य और योगदान चिन्हित रहेगा।