बैसाखी पर निबंध – Essay on Baisakhi (Class 1 to 12th)

बैसाखी पर निबंध – 1 (200 शब्द)

बैसाखी एक ऐसा त्योहार है जिसे विभिन्न लोगों द्वारा विभिन्न कारणों से मनाया जाता है। किसानों के लिए यह बेसाख सीज़न का पहला दिन है जो वर्ष का वह समय होता है जब सभी को उनकी कड़ी मेहनत का नतीज़ा मिलता है। इसका कारण यह है कि इस समय के दौरान सभी फसलों को परिपक्व और पोषित किया जाता है। वे इस दिन भगवान का शुक्रिया अदा करते हैं और फसल को काटने के लिए इकट्ठा होते हैं।

यह दिन सिख और हिंदू समुदायों के लोगों के लिए नए साल की शुरुआत का प्रतीक है और यही इस दिन को मनाने का एक और कारण भी है। नए साल की अच्छी शुरूआत के लिए प्रार्थना की जाती है। बैसाखी, जो हर साल 13 या 14 अप्रैल को आती है, और देश भर के स्कूलों और कार्यालयों की छुट्टी होती है। यह कुछ भारतीय त्योहारों में से एक है जो एक निश्चित तिथि पर मनाए जाते हैं।

पंजाब में और देश के अन्य हिस्सों में लोग अपनी पारंपरिक पोशाक में जश्न मनाने के लिए तैयार होते हैं। पंजाब में लोगों को भांगड़ा और गिद्दा (पंजाब के लोक नृत्य) करते हुए इस दिन का जश्न मनाते हुए देखा जा सकता है। इस अवसर का जश्न मनाने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों में बैसाखी मेले आयोजित किए जाते हैं और जुलूस आयोजित किए जाते हैं।

बैसाखी पर निबंध – 2 (300 शब्द)

प्रस्तावना

बैसाखी, जिसे वैसाखी या वसाखी भी कहा जाता है, हर साल 13 या 14 अप्रैल को मनाया जाता है। अन्य भारतीय त्यौहारों की तरह सभी वर्ग विशेषकर सिख समुदाय से संबंधित लोगों द्वारा बैसाखी की प्रतीक्षा की जाती है क्योंकि यह उनके मुख्य उत्सवों में से एक है। न केवल यह उनके लिए नए साल की शुरुआत को चिन्हित करता है बल्कि यह फसलों की कटाई का जश्न मनाने का भी समय है।

बैसाखी – मुख्य सिख त्योहारों में से एक

मूल रूप से एक हिंदू त्यौहार बैसाखी, गुरु अमर दास द्वारा एक मुख्य सिख त्योहार के रूप में शामिल किया गया था और तब से पूरे विश्व के सिख समुदाय के लोगों द्वारा इसे बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। दसवें सिख गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह ने 1699 में खालसा पंथ की नींव रखी थी। उसी दिन खालसा पंथ का गठन किया गया था और यही कारण है सिख समुदाय के पास इस दिवस को मनाने का।

पूरे भारत के गुरूद्वारे, विशेष रूप से पंजाब के विभिन्न क्षेत्रों में, इस दिन के लिए सजाए जाते हैं और बड़ी संख्या में लोग इस दिन पूजा करने के लिए आते हैं। नगर कीर्तन गुरुद्वारों से किया जाता है और लोग जुलूसों के दौरान आनंद लेने के लिए नाचते, गाते और पटाखे छुड़ाते हैं।

बहुत से लोग अपने रिश्तेदारों, मित्रों और सहकर्मियों के साथ इस दिन को मनाने के लिए घर पर इक्कठा होते हैं।

स्वर्ण मंदिर में बैसाखी का उत्सव

जहाँ बैसाखी का मेला और जुलूस दुनिया भर के कई स्थानों पर आयोजित किया जाता है वहीँ स्वर्ण मंदिर में मनाए गये जश्न से कोई भी जश्न मेल नहीं खा सकता।

स्वर्ण मंदिर, जिसे श्री हरमंदिर साहिब के रूप में भी जाना जाता है, सिख समुदाय के लिए सबसे पवित्र स्थान माना जाता है। विश्व के विभिन्न जगहों से सिख यहां आयोजित भव्य दिव्य समारोह में भाग लेने के लिए स्वर्ण मंदिर की यात्रा करते हैं।

निष्कर्ष

सिख समुदाय के लोगों को उनके मज़ेदार स्वभाव के लिए जाना जाता है और बैसाखी के त्योहार के अवसर पर सिख समुदाय के लोगों की ख़ुशी देखते ही बनती है।

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बैसाखी पर निबंध – 3 (400 शब्द)

प्रस्तावना

बैसाखी हर साल अप्रैल की 13वीं (या कभी-कभी 14वीं) पर मनाया गया उत्सव है जो सिखों और हिंदुओं के मुख्य त्यौहारों में से एक है हालांकि इस उत्सव का कारण इन दोनों समुदायों के लिए कुछ हद तक भिन्न होता है। यहां आगे बताया गया है कि हिंदू और सिख धर्म से संबंधित लोगों द्वारा इस दिन को कैसे माना और मनाया जाता है।

बैसाखी का महत्व – हिंदू समुदाय के लिए

कहा जाता है कि बैसाखी का दिन पारंपरिक सौर नव वर्ष का पहला दिन है। हिंदू समुदाय के लोग इस दिन अपने नए साल का जश्न मनाते हुए मंदिरों में जाते हैं, प्रार्थना करते हैं, बैठक करते हैं और अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को शुभकामनाएं भेजते हैं, अच्छा भोजन करते हैं और नए कपड़े पहनते हैं।

इस समय के दौरान फसल पूरी हो जाती है और देशभर के किसान इस दिन फ़सल को काटने का जश्न मनाते हैं। बैसाखी भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों से जानी जाती है हालांकि जिस तरह से इसे मनाया जाता है वह लगभग समान है। ये त्यौहार विभिन्न भारतीय राज्यों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है:

  • असम में रोंगली बीहु
  • ओडिशा में महा विश्व संक्रांति
  • पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में पोहेला बोशाख या नाबा बारशा
  • आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में उगाडी
  • तुलू लोगों के बीच बिसू
  • कुमाऊं उत्तराखंड में बिखू या बिखौती
  • तमिलनाडु में पुथंडू
  • केरल में विशु

इनमें से कुछ का जश्न बैसाखी के ही दिन मनाया जाता है जब कुछ का एक-दो दिन बाद मनाया जाता है।

बैसाखी का महत्व – सिख समुदाय के लिए

आम धारणा के विपरीत बैसाखी वास्तव में एक हिंदू त्योहार है। सिख गुरु अमर दास थे जिन्होंने सिखों के लिए इसके साथ-साथ अन्य दो त्योहारों – दीपावली और मकर संक्रांति को चुना था। हिंदू धर्म की ही तरह बैसाखी सिख धर्म में नए साल की शुरुआत का प्रतीक है और इसलिए भी यह जश्न मनाने का एक दिन है।

इसके अलावा पंजाब में फ़सल कटाई के रूप में भी बैसाखी को मनाया जाता है क्योंकि पंजाब क्षेत्र में इस समय के दौरान रबी फसल उगती है। किसान फसल के लिए भगवान का धन्यवाद करते हैं और भविष्य में बहुतायत के लिए भी प्रार्थना करते हैं।

यह दिन सिखों के लिए भी विशेष है क्योंकि नौवें सिख गुरु तेग बहादुर के निष्कासन के बाद, इस दिन सिख आदेश की शुरुआत हुई थी, जिन्होंने मुगल सम्राट औंरगजेब के इस्लाम को कबूलने के आदेश को अस्वीकार कर दिया था। इसके बाद उनके दसवें गुरु के राज्याभिषेक और खालसा पंथ का गठन किया गया।

निष्कर्ष

देश में मुख्य रूप से पंजाब में भव्य उत्सव के साथ बैसाखी मनाया जाता है जहां लोग जुलूस निकालते हैं, पटाखे जलाते हैं, अपने करीबी लोगों के लिए दावत का आयोजन करते हैं और पूरे दिन का आनंद उठाते हैं।

बैसाखी पर निबंध – 4 (500 शब्द)

प्रस्तावना

बैसाखी सिख समुदाय के मुख्य त्योहारों में से एक है। यह उनके लिए नए साल की शुरुआत का प्रतीक है और इसे फसलों के पकने के उपलक्ष में भी मनाया जाता है। पूरे देश में हिंदू समुदाय के बहुत से लोग भी इसी कारण इस दिन को मनाते हैं। हालाँकि इस त्यौहार का नाम अलग-अलग क्षेत्र में भिन्न-भिन्न होता है। दूसरे भारतीय त्यौहारों की तरह बैसाखी भी लोगों को एकजुट करता है। सभाएं आयोजित की जाती हैं, मंदिरों और गुरुद्वारों को रोशनी और फूलों से सजाया जाता है, लोग जातीय परिधान की पोशाक पहनते हैं और अच्छे भोजन का आनंद उठाते हैं।

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विश्व भर में बैसाखी का जश्न

न सिर्फ भारत में बल्कि विश्व के अन्य हिस्सों में भी बैसाखी मनाई जाती है। यहां एक विस्तृत नज़र डाली गई है कि कैसे यह त्योहार मनाया जाता है:

पाकिस्तान

पाकिस्तान में सिखों के काफी ऐतिहासिक स्थलों को मान्यता दी गई है जिनमें से एक गुरु नानक देव का जन्म स्थान बताया गया है और वे हर साल बैसाखी के दिन सिख और साथ ही हिंदू तीर्थयात्रियों को आकर्षित करते हैं।

1970 के दशक तक यह त्योहार स्थानीय लोगों द्वारा उत्साह के साथ मनाया जाता था। गेहूं की फसल की कटाई के बाद लाहौर में बैसाखी के मेले का आयोजन किया गया था। हालांकि 1970 के दशक के दौरान ज़िया-उल-हक की सत्ता में आने के बाद यह सब खत्म हो गया था। हाल ही में पाकिस्तान मुस्लिम लीग ने पतंग उड़ाने पर प्रतिबंध लगा दिया था। हालांकि कई पाकिस्तानी इलाकों और अन्य कुछ स्थानों पर अभी भी बैसाखी के मेले लगते हैं।

कनाडा

कनाडा में बहुत सारे सिख हैं और वे बड़े उत्साह के साथ बैसाखी का त्यौहार मनाते हैं। यह उनके लिए मुख्य त्योहारों में से एक है। इस दिन नगर कीर्तन आयोजित किया जाता है और बड़ी संख्या में लोग इसमें भाग लेते हैं। ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत में कनाडा के सारे शहर में वर्ष 2014 में 2,00,000 से अधिक लोग बैसाखी का उत्सव मनाने के लिए इक्कठा हुए थे। वर्ष 2016 में यह संख्या रिकॉर्ड 3,50,000 लोग और 2017 में 4,00,000 लोगों के रूप में दर्ज की गई थी।

यूनाइटेड स्टेट्स

मैनहट्टन और लॉस एंजेलेस संयुक्त राज्य अमेरिका के दो ऐसे शहर हैं जहाँ विशाल उत्साह के साथ बैसाखी का त्यौहार मनाया जाता है। मैनहट्टन में सिख समुदाय के लोग इस दिन मुफ्त भोजन खिलाते हैं और समाज को सुधारने के लिए विभिन्न कार्यों में योगदान करते हैं। लॉस एंजेलेस में कीर्तन का आयोजन किया जाता है और इस त्योहार को मनाने के लिए जुलूस निकाला जाता है।

यूनाइटेड किंगडम

यूनाइटेड किंगडम में भी एक बड़ा सिख समुदाय रहता है। ब्रिटेन में वेस्ट मिडलैंड्स और लंदन सिखों की सबसे बड़ी संख्या के लिए जाने जाते हैं। साउथहॉल में आयोजित की जाने वाले नगर कीर्तन यूनाइटेड किंगडम के विभिन्न हिस्सों से बड़ी संख्या में लोगों को आकर्षित करते हैं। यह बर्मिंघम सिटी काउंसिल के साथ समन्वय में आयोजित किया जाता है। नगर कीर्तन शहर में गुरुद्वारों से शुरू होते हैं और हैण्डस्वर्थ पार्क में आयोजित बैसाखी मेले में समाप्त होते है। इस वर्ष सादिक खान, लंदन के महापौर, साउथहॉल में स्थित गुरुद्वारे की बैसाखी परेड में भाग लेते देखे गए थे।

निष्कर्ष

विश्व के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले सिख समुदाय के लोगों द्वारा बैसाखी का त्यौहार मनाया जाता है। भारतीय अपने जोशीले व्यवहार और देश के विभिन्न हिस्सों में बैसाखी का उत्सव मनाने के लिए जाने जाते हैं। इसी वजह से स्थानीय लोग आकर्षित होते हैं और उतने ही उत्साह से बैसाखी के उत्सव में भाग लेते हैं।

बैसाखी पर निबंध – 5 (600 शब्द)

प्रस्तावना

बैसाखी, वसाखी या वैसाखी के रूप में भी जाना जाता है, मुख्य रूप से एक सिख त्योहार है जिसे भारतीय राज्य पंजाब में बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। सिख समुदाय के लोग और देश के अन्य भागों में रहने वाले कई हिंदू समुदाय के लोग भी इस त्यौहार को मनाते हैं क्योंकि यह उनके लिए नए साल की शुरुआत का प्रतीक है। यह त्योहार प्रत्येक वर्ष ज्यादातर 13 अप्रैल को मनाया जाता है।

बैसाखी के त्यौहार का महत्व

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यद्यपि मुख्य सिख त्योहारों में से एक माने जाने वाला त्यौहार बैसाखी मूल रूप से एक हिंदू त्योहार है। यह तीन हिंदू त्योहारों में से एक माना जाता है, जिसे गुरु अमर दास ने सिखों के लिए चुना। दूसरे दो त्यौहार दिवाली और महाशिवरात्रि थे। हालांकि कुछ तथ्यों के अनुसार उन्होंने महा शिवरात्रि की जगह मकर संक्रांति को चुना।

इस दिन को बहुत शुभ माना जाता है और इसे कई कारणों की वजह से मनाया जाता है। यहां इस दिन के विशेष कारणों पर एक नजर है:

  • इस दिन को गुरु तेग बहादुर के उत्पीड़न और मौत के बाद सिख आदेश की शुरुआत के रूप में देखा गया जिन्होंने मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश के अनुसार इस्लाम को कबूलने से इनकार कर दिया। इससे दसवें सिख गुरु के राज्याभिषेक और खालसा पंथ का गठन हुआ। यह दोनों घटनाएँ बैसाखी दिवस पर हुई। यह दिन हर वर्ष खालसा पंथ के गठन की याद में मनाया जाता है।
  • सिख भी इसे फसल काटने के उत्सव के रूप में मनाते हैं।
  • यह सिख समुदाय से संबंधित लोगों के लिए भी नए साल का पहला दिन है।
  • यह एक प्राचीन हिंदू त्योहार है जो सौर नव वर्ष को चिह्नित करता है। हिंदु इस दिन वसंत की फसल का भी जश्न मनाते हैं।

बैसाखी का उत्सव

हालांकि इस त्योहार को मनाने के बहुत सारे कारण हैं। यह देश के विभिन्न भागों में बहुत जोश से मनाया जाता है।

गुरुद्वारों को इस दिन पूरी तरह से रोशनी और फूलों से सजाया जाता है और इस शुभ दिन को मनाने के लिए कीर्तनों का आयोजन किया जाता है। देश भर में कई जगहों पर नगर कीर्तन जुलूस भी आयोजित किए जाते हैं और बहुत से लोग इनमें भाग लेते हैं। लोग इस समारोह के दौरान पवित्र गीत गाते हैं, पटाखे जलाते हैं और मिठाई बांटते हैं, प्रार्थनाएं की जाती है और लोग इस विशाल जुलूस के माध्यम से इस त्योहार का आनंद लेते और मनाते हैं।

गुरुद्वारें जाने से पहले कई लोग नजदीक की नदियों या झीलों में सुबह-शाम के दौरान पवित्र डुबकी लेते हैं। गुरुद्वारों का दर्शन इस दिन पर एक अनुष्ठान है। लोग नए कपड़े पहनते हैं और अपने स्थानीय गुरुद्वारों में प्रसाद और प्रार्थना करते हैं। बहुत से लोग पंजाब में अमृतसर में स्थित स्वर्ण मंदिर भी जाते हैं जो सिख धर्म में सबसे शुभ गुरुद्वारा माना जाता है।

इसके अलावा सामुदायिक मेलों का आयोजन किया जाता है। अच्छा खाना खाने और झूले झूलने का आनंद लेने के लिए लोग इन मेलों का दौरा करते हैं। बहुत से लोग अपने पड़ोसियों और रिश्तेदारों के साथ मिलन-जुलने के लिए अपने घर में एक साथ मिलकर बैठक करते हैं।

हिंदू गंगा, कावेरी और झेलम जैसी पवित्र नदियों में डुबकी लेने और मंदिरों में जाकर इस त्यौहार को मनाते हैं। वे एक साथ मिलकर इस त्यौहार और उत्सव को मनाते हैं तथा अपने करीबी और प्रियजनों के साथ इसका आनंद लेते हैं। यह त्यौहार हिंदू धर्म में विभिन्न नामों से जाना जाता है जैसे बंगाल में पोहेला बोशाख, असम और भारत के अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में बोहग बिहु या रंगली बिहू, केरल में विशु और तमिलनाडु में पुथंडू के नाम से जाना जाता है। यह इन समुदायों के लिए वर्ष के पहले दिन को चिह्नित करता है।

निष्कर्ष

यह त्यौहार विभिन्न समुदायों में विभिन्न कारणों से मनाया जाता है। हालांकि इस त्यौहार का मूल उद्देश्य है प्रार्थना करना, एकजुट रहना और अच्छे भोजन का आनंद लेना आदि। इस दिन लोगों में बहुत खुशी और उत्तेजना होती है।

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